एक शहन्शाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है (Leader)
Vs
इक शहनशाह ने दौलत का सहारा ले कर, हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक(Gazal)
This blog is written to explain two contrastive songs on Taaj Mahal. One is from the movie 'Leader' (1964) and another is from the movie 'Gazal' (1964)
सदियों से ताज महल खुबसूरती और मोहब्बत का वो पैमाना (शराब का प्याला) रहा है जिसे हर आशिक लबों से चुमना चाहता है, हर शायर इसे पीकर बहेकना चाहता है, हर सख्श इसे आंखो मे समा लेना चाहता है. जो भी इसकी छांव में आया, सभी ने इसकी ठंडक को महेसूस किया, सभी ने इसे सराहा. कइंं शायरो के जरिये इसके जमाल (Beauty) को कागज पर उतार कर इसे और नूरानी बनाने की जहेमत की गइ मगर फकत ताज की खूबसुरती के एक बार दिदार से इसके लिये लिखे गए बहेतरीन से बहेतरीन नगमे (गीत/Song) भी फिके नजर आते है, एसा ही एक गीत लिखा गया था शकिल बदायुंनी की कलमसे जिसे लिडर फिल्म में दिलिप कुमार और वैजयन्ती माला पर फिल्माया गया. और दुसरी तरफ उस गीत से बिलकुल मुख्तलिफ (Different) अंदाज बयां करता हुआ गीत लिखा गया जो ताज की खामीओ को जाहिर (To express something) करता है. शायद ही किसीने पैसो का गूरुर करती इस इमारत के साये मै बैठे कीसी गरीब के जझबातो को पहेचाना, और उसे लोगो तक पहोचाने का हौसला दिखाया होगा. उन्ही चंद लोगो में से एक शायर थे साहिर लुधियानवी, जिन्होने ताज महल को एक नये नजरिये से देखा और इसकी झगमगाती रौशनी पर तनकीद (Criticize) करने की कोशिश की. इस गीत को गज़ल फिल्म में सुनील दत्त और मीना कुमारी पर फिल्माया गया.
दोनो ही गीतो को मोहम्मद रफी ने ना सिर्फ गाया है, मगर दोनो ही गीत को रूह (Soul)
बक्शी है. शकिल साहब की नज्म में चाह वही दुसरी और साहिर की लिखावट में एक गरीब की आह नजर आती है. अगर कोइ इस तरह के गीतो के साथ पुरा इंसाफ (Justice)
कर सक्ते थे तो वो सिर्फ रफी साहब ही थे, जिनकी हसीन आवाज सुनने को शायद फरिश्ते भी आसमान छोड कर ज़मिन पर आते होंगे.
शकिल बदायुनी द्वारा लिखी गयी नज्म और उसका मतलब.
इस गीत में सिर्फ और सिर्फ ताज की खूबसुरती और दो प्यार करने वालो की मोहब्बत की खुश्बु छलकती है. विडियो में दोनो ही महेबूब ताज महल के आघोश में दुसरेआशिको की तरह अपनी भी महोब्बत की गवाही देते नजर आते है.
नज्म
एक शहन्शाह ने बनवा के हसीं ताजमहल
सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है
इसके साये मे सदा प्यार के चर्चे होंगे
खत्म जो हो ना सकेगी वो कहानी दी है
एक शहन्शाह ने बनवाके ...
शकील ताज को सिर्फ महोब्बत की नजरयें से देखते है, जिस तरह किसी खूबसुरत और दिलकश चीज को देखते ही मन में जो आरजू उठती है, जिसे सिर्फ महेसूस किया जा सकता है. उस वक्त उसे बनाने के पिछे की गइ मशक्कत (Hard work) की तरफ शायद ही हम तवज्जो (To pay attention) देते है. और कुछ पलो के लिये हम सिर्फ इसकी खूबसुरती का लुत्फ उठाते ही रह जाते है. शकिल सा'ब द्वारा लिखी गइ इस पक्तिओ को पढकर या सुनकर भी कुछ ऐसा ही लगता है, जैसे किसीने ताज महल को पहेली बार देखा और उसके मन में जो जज़बात जागे उसे कागज पर लिखने की कोशिश की और ये पंक्तिया बन गइ.
इसका अफ़साना हकीकत के सिवा कुछ भी नही
इसके आगोश मे आकर ये गुमां होता है
ज़िन्दगी जैसे मुहब्बत के सिवा कुछ भी नही
ताज ने प्यार की मौजों को रवानी दी है
एक शहन्शाह ने बनवाके ...
अफसाना : Story, कहानी.
आगोश : To come in touch with someone/something.
मौज : Wave
रवानी : Flaw, बहाव.
ताज महल वो काल्पनिक कहानी है जिसकी कल्पना कोइ कवी भी नही कर सकता फिर भी ये हकिकत के रुप में एक कहानी बनके खडा है. जिसकी कहानी महज़ एक हकिकत है. इसके आगोश में आकर हर प्रेमि को ये गुरूर होता है कि शायद उसने ज़िंदगी में कुछ हांसिल ना भी किया हो फिर भी एक बहोत ही बेशकिमती चीज पाइ है जिसका नाम है मोहब्बत. इसके अलावा ताज महल ने प्यार करने वालो को एसी उमंग अता की है जो हर प्रेमी के दिल में उठती प्यार की तरंगो को ज्यादा बहाव देने का काम करती है.
ये हसीं रात ये महकी हुई पुरनूर फ़ज़ा
हो इजाज़त तो ये दिल इश्क़ का इज़हार करे
इश्क़ इन्सान को इन्सान बना देता है
किसकी हिम्मत है मुहब्बत से जो इनकार करे
आज तकदीर ने ये रात सुहानी दी है
एक शहन्शाह ने बनवाके ...
फ़ज़ा : Spring,
पुरनूर : दिलकश, सौदर्ययुक्त
कवि ताज की खुबसुरती से लबरेज़ (छलकता हुआ) इस हसीन रात मे अपनी माशुक से मोहब्बत का इज़हार करने की इज़ाजत मांगते है, और अपनी तकदीर का अहेसान मानते हुए शुक्रिया अदा करते है की उन्हे एक एसी रात मिली है जिसमे ताज की रौशनी अंधेरी रात में चांद की चांदनी की तरह जगमगा रही है. और उसी चांदनी में दोनो को ताज को साक्षी मानकर प्यार का इज़हार करने का मौका मिला.
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एक शहेनशाह ने बनवां के हसी ताज महल
ये नज़्म शकिल साहब द्वारा लिखी गइ नज़्म का जवाब है साहिर की तरफ से ये दिखाने के लिये की मोहब्बत करने वालो को सिर्फ ताज महल से मुतासिर (To be impressed) होने की जरूरत नही है, जिनसे ना जाने कितने ही मज़दुरो के खून की बूं आती है. शाहजहाँ ने बनवाइ इस इमारत को दिखावे का बहेतरीन नमूना ही कहेगें क्योकी ताज महल बेशक बेहद खूबसुरत मौजज़ा है मगर शाहजहाँ को इसे बनवाते वख्त तो बेशक ये बात मालूम ना होगी के आगे चलकर ताज प्यार का प्रतिक बन जाएगा इसी लिये इतने खर्च के पीछे (तकरीबन 9 करोड) और कुछ नही बल्के एक अय्याश शहेनशाह और मजदुरो का इस्तेमाल करके अपनी मोहब्बत का दिखावा करने वाला दिलफेंक आशिक ही नजर आता है.
साहिर के मुताबिक ये बात से कोइ एतराज़ नही की ताज एक दिलकश इमारत है जो शायद दुसरी नही बन सकती मगर हमे ये भी याद रखना चहिए की ये इमारत शाहजाँ ने नही बनाइ है, ये अगर मुक्कम्मल हुइ है तो सिर्फ उन छोटे, बिछडे और महेनतकश लोगो की बदोलत जिनकी रुहे आज भी ताज महल की तारिफो में अपना वजूद (Existence) ढूँढ़ती होंगी. ना ही शहेनशाह का एक बूंद लहुं बहा होगा, ना ही उनकी पेशानी (Forehead) से एक कतरा पसीना, ना उनके हाथो में छाले पडे होंगे, ना ही उनकी आंखो से एक आंसू गीरा होंगा. जब सभी मज़दूरोने अपने लहू का एक एक कतरा ही नही मगर अपनी रूह तक को आफताब (Sun) की चमडी जला देने वाली धूप मे ज़ोंक दिया तब जाकर लोग इस संग-ए-मरमर के महज़ बेजान मकबरे पर अपनी मोहब्बत का दावा पेश कर पाते है.
शायद आसमां से भी सफेद इस संग-ए-मरमर पर लगे खून के छिंटे साहिर को दिखे, और उन्होने ये नज़्म लिखी होगी.
नज़्म.
ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुम को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से
मज़हर : Light, रौशनी
वादी : Valley
अकिदत : Respect/श्रध्धा
साहिर अपनी महेबूबा से कहेते है की मुज़े कोइ गिला नही अगर ताज तेरे लिये मोहब्बत की रौशनी है, ना ही इस बात से कोइ शिकवा (फरियाद) है की तुजे ताज से अकिदत है और ये पुरा ताज सफेद होने के बावजूद प्यार के हर रंग नजर आते है तुजे. मगर मेरी महेबूब कही और मिला कर मुजसे. साहिर ऐसा इस लिये कहेते है क्योंकी शायद वो जानते है की उनकी महेबूब ये नही जानती के ताज की हकिकत क्या है! इस लिये उन्हे अपनी माशूक से तो शिकायत नही मगर वो बखूबी समजते है की सिर्फ एक कब्र वाले उस कब्रिस्तान में तो वो प्यार बिलकुल नही फरमा सकते जहां पर ना जाने कितने ही बेकसूरो की लाशे दफ्न है, मगर अफसोस के उन्हे कोइ कब्र नसीब ना हुइ, और ज़मीं में दफ्न उन्ही लाशो पर बने उंचे उंचे रिवाक (Raised platforms) पर चलके लोग उस एक कब्र पर फातिहा पढने आते है.
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के
लेकिन उन के लिये तश्हीर का सामान नहीं
क्यों के वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे
सादिक : Honest, ऐतबार के काबिल
जज़्बे : Emotions
तश्हीर : Publicity
मुफलिस : गरीब
साहिर समजाते है की मोहब्बत करने वाले लोगो में सिर्फ वही शख्स नही आता जिसने ये ताजमहल बनवाया. अनगिनत लोगोने मोहब्बत करी है और वो मोहब्बत भी इस संग-ए-मरमर की तरह सफेद और मुकद्दस (Sacred, पवित्र)थी मगर अफसोस के उन लोगों के पास अपने प्यार का दिखावा करने के लिये पैसा नही था, सामान नही था. क्योंकी वो लोग भी लाखो और लोगों की तरह मुफलीस थे. इसका ये मतलब नही के उनका प्यार सच्चा नही था बल्के प्यार करने वाले हर उस शख्स का प्यार सच्चा है जो दिल-ओ-जान से मोहब्बत की इबादत (Worship) करता है और अपने प्यार के लिये खुद की जान की बाज़ी लगाता है ना की किसी और के जनाज़ो पर हुकूमत का गूरुर करता है. हा, शायद उनके पास अपनी मोहब्बत का सूबुत देने के लिये कुछ भी नही है, लेकिन शायद उन्हे ऐसा फिज़ुल दिखावा करने की जरूरत भी नही है.
ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
इक शहनशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक
मुनक्कश : Sculptured
महराब : Related to gate’s
decoration, Arch.
ताक : अनोखा, निराला.
कहां जाता है की साहिर ने जब ये नज़्म लिखी उस वख्त उन्होने ताज महल को देखा ही नही था. उन्हे सिर्फ ये मालूम था की ताज कहां पर है (अगर उन्होने ताज देखा होता तो शायद इतनी गहेरी तनकिद नही लिख पाते और ताज की खूबसुरती के दिवाने बन जाते) फिर भी वो शकिल साहब की नज़्म का जवाब देने के लिये लिखते है की जमुना के मुकद्दस किनारे पर बनाइ हुइ ये इमारत महज एक मकबरा (Grave) होने के बावजूद भी किसी भी महल से आलिशान है. ये नक्शिदार दिवारे, ये उंचे दरवाज़े अमीरो के घमंड के सिवा कुछ नही दिखाता.
आखिर में साहिर अपने तरकश में से लफ्ज़ो का बहेतेरी तीर छोडते हुए तनकीद करते है की इक शहनशाह ने दौलत का सहारा ले कर,हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक. अपनी हूकुमत में शहजहाँ ने ना सिर्फ ताज महल बनवाया बल्के मोती महल, मोती मस्जिद, लाल किल्ला और ना जाने कंइ इमारते बनवाइ इसके चलते ही उनके समय को इमारत निर्माण और मुघल शासन का सुवर्ण युग कहा जाता है. उनके ठाट-बाट की अगर हम बात करे तो उन्होने अपना राज्याभिषेक आजसे तकरीबन 390 साल पहेले 5 करोड के खर्च में और 7 करोड के खर्च में अपने बैठने के लिये तख्त (मयुरासन) बनवाया था, जिसमे कोहिनूर हिरा भी जडा गया था. अब इन सभी किस्सो से इनको अय्याशी या फिर पैसो का दिखावा ना कहे तो और क्या?
शायद साहिर को इस अय्याशी से भी कोइ हैरानी नही है, मगर वो ये नही चाहते की उनकी अमीरी को इतना बढावा मिले के ताज को मोहब्बत की निशानी मनना पडे. वो समजते है की वो शहेनशाह-ए-हिंदुस्तान थे और उनके पास खज़ाना था लुटाने को, पर हम गरीबो के पास पानी के नाम पे आंसु भी नही.इस लिये अपनी महेबूब से बार बार कहेते है मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से……….
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से………..
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मेरी महेबूब कहीं और मिला कर मुजसे
Its not the complete nazm that I explained, The complete Nazm was published in the Deewan of Sahir Ludhiyanvi named as talkhiyaan. If you want to understand the entire Nazm please watch the video in bellow given link.
मेरी महेबूब कहींंऔर मिला कर मुजसे.
Wah kya khub likha hai Sahir ji ne "अनगिनत लोगोने मोहब्बत करी है और वो मोहब्बत भी इस संग-ए-मरमर की तरह सफेद और मुकद्दस , मगर अफसोस के उन लोगों के पास अपने प्यार का दिखावा करने के लिये पैसा नही था, सामान नही था.
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