"मेरे रश्क-ए-कमर"
We have heard this song many times as it has taken recently in Badshaho (Bollywood) movie with some edited lines. It's not a new song it was already written and sung forty years back in 1987. This Ghazal was written by 'फना बूलंदशहेरी' and originally sung by a lagendery qawwal 'Nusrat Fateh Ali Khan' (uncle to 'Rahat Fateh Ali Khan').
We have heard this song many times as it has taken recently in Badshaho (Bollywood) movie with some edited lines. It's not a new song it was already written and sung forty years back in 1987. This Ghazal was written by 'फना बूलंदशहेरी' and originally sung by a lagendery qawwal 'Nusrat Fateh Ali Khan' (uncle to 'Rahat Fateh Ali Khan').
I have attempted to explain this song with the help of easy Urdu and Hindi.
"मेरे रश्क-ए-क़मर तू ने पहली नज़र
जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया"
जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया"
गझल में लिखा गया "रश्क-ए-कमर" लफ्झ सुनने में जितना अच्छा लगता है, उसका मतलब भी उतना ही खूबसूरत है. रश्क यानी ईर्ष्या (Jealousy) और कमर का मतलब होता है चांद
रश्क-ए-कमर - चांद को भी जिसकी ईर्ष्या हो जाए एसी खूबसूरत औरत.
रश्क-ए-कमर - चांद को भी जिसकी ईर्ष्या हो जाए एसी खूबसूरत औरत.
"बर्क सी गिर गयी काम ही कर गयी
आग ऐसी लगायी मज़ा आ गया"
आग ऐसी लगायी मज़ा आ गया"
"नजर" पर हर जुबान के कवि की नजर रही है, क्योंकी कविओ के मुताबिक पहेली नजर की महोब्बत पूरी जिन्दगी आपके दिल में खुशनुमा खुश्बू बन कर बिखरती रहेती है और आपके वजूद को मुसल्सल (Continuously) महेकाती रहेती है.
यहां "बर्क" का मतलब है बिजली, यहां पहेली "नजर" को बिजली की उपमा दी गइ है और कहा गया है की पहेली नजर एसी मिली के जैसे बिजली सी गीर गइ, जीस बिजली ने आग सी लगाइ, और आग भी एसी लगाइ के बस मजा आ गया.
"जाम में घौल कर हुस्न की मस्तियाँ
चांदनी मुस्कुराई मज़ा आ गया
चाँद के साए में ऐ मेरे साकिया
तू ने ऐसी पिलाई मज़ा आ गया "
हुस्न की खूबसूरती नस नस में इस तरह से घुल गइ के चांद की चांदनी भी मुस्कुरा रही है. चांद के साए में हसिना (दिलरूबा-lover) ने एसा जाम पिलाया के बस मजा आ गया.
"वो बे हिजबाना वो सामने आ गए
और जवानी जवानी से टकरा गयी
आँख उनकी लड़ी यूँ मेरी आँख से
देख कर ये लड़ाई मज़ा आ गया "
बे-हिजबाना मतलब बे-परदा(बगैर परदे के - Unveiled)
कभी कभार (Seldom) मिलती नजरे जब परदे के बगैर सामने आ जाए तो जवानी की महेफील में जशन सा माहोल छा जाए. बस ये बे परदा आंखो की एक दुसरे से लडाइ देखके मजा आ गया.
"आँख में थी हया हर मुलाक़ात पर
सुर्ख आरिज़ हुए वसल की बात पर
उसने शर्मा के मेरे सवालात पे
ऐसे गर्दन झुकाई मज़ा आ गया"
हया (शरमाना) हर औरत का हक है, हर औरत का गहेना और शृंगार है. हर मुलाकात पे शरमाती महेबूबा के गाल मुलाकात के नाम से ही लाल हो गए. शायारना सवालात पर खामोश खडी महेबूबा को गर्दन जूंकाए हुए देख के बस मजा आ गया.
"ऐ ‘फ़ना’ शुकर है आज बाद-ए-फ़ना
उसने रख ली मेरे प्यार की आबरू
अपने हाथों से उसने मेरी क़बर पर
चादर-ए-गुल चढ़ाई मज़ा आ गया "
यहां शायर 'फना बूलंदशहेरी' अपने तखल्लुस 'फना' का इस्तेमाल करते हुए लिखते है के मौत के बाद भी उस (महेबूबा) ने मेरी इज्जत रख ली. भले ही जिन्दगी में उस (महेबूबा) के हाथो से छूए हुए फूल उसे नसीब ना हो सके, पर मरने के बाद जब वो (महेबूबा) अपने हाथो से मेरी कब्र पर फूल चढा के गइ तब भी बस मजा आ गया.
Kya khub! 😇 Keep writing. We all are eager to read such more blogs friend. 👍👍👍 Very well expressed!
ReplyDeletewow very good explained...
ReplyDeleteWhat an explanation Ramiz!!! Very well written.
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